Daaku Maansingh: आज डाकू मानसिंह की कहानी हम आपको बताएंगे साल था। 1896 आगरा से लगभग 50 किलोमीटर दूर खेड़ा राठौर गांव में बिहार राठौर के परिवार में एक लड़के का जन्म होता है। लड़का गरीब परिवार में जन्मा था, लेकिन जैसे-जैसे लड़का बड़ा होता गया। वैसे-वैसे उसकी सोच और फैसला करने के तरीके की कहानी प्रसिद्ध होने लगी। बहुत कम उम्र में मानसिंह गांव में पंचायत करने लगे और जो फैसला गांव के लोगों को मानसिंह सुना देते उनके फैसले को स्वीकार किया जाता। मान सिंह की ख्याति गांव व आसपास के गांव में बढ़ने लगी।
गांव के साहूकारों ने कर लिया मानसिंह की जमीन पर कब्जा
अब यही बात गांव के कुछ साहूकारों और ब्राह्मणों को चुभने लगी। जिनकी गांव में तूती बोलती थी। उन्होंने योजना बनाई कि कैसे मानसिंह को नीचा दिखाया जाए। उस समय मानसिंह की उम्र लगभग 25 वर्ष थी। गांव के ब्राह्मण परिवारों और साहूकारों ने मिलकर मान सिंह की जमीन पर कब्जा कर लिया। मानसिंह कानून को बखूबी जानते थे, इसलिए मानसिंह ने पुलिस और कानून का सहारा लिया। लेकिन, पुलिस ने उल्टा मानसिंह को दुत्कारा।
साल 1928 में ब्राह्मण और साहूकार परिवारों द्वारा मिलकर मानसिंह के ऊपर लूट और मारपीट का झूठा मुकदमा लगवा दिया जाता है। जिसमें पुलिस मानसिंह को गिरफ्तार करती है और जेल भेज देती है। हालांकि मानसिंह कुछ दिनों बाद जेल से घर आते हैं। घर आने पर पता चलता है कि ब्राह्मण और साहूकारों ने उसके भाई को पीट दिया है, मुंह से खून बह रहा है। मान सिंह को पता चलता है कि उसके भाई का जुर्म केवल इतना है कि उसने ब्राह्मण के कुएं से पानी भर लिया था। अब यहीं से शुरू होती है मानसिंह के जीवन की असली कहानी।
HS kirthna: फिल्मी दुनिया को छोड़ पूरा किया आईएएस बनने का सपना
मानसिंह ने परिवार के साथ मिलकर कर दिया हमला
मानसिंह यह सब देखकर बर्दाश्त नहीं कर पाए और परिवार के साथ मिलकर ब्राह्मण और साहूकार परिवारों पर हमला बोल दिया। मानसिंह ने उनके खेत खलियानों को आग के हवाले कर दिया। उस दिन गांव में केवल चीख सुनने के लिए मिल रही थी। बताया जाता है कि मानसिंह ने दो ब्राह्मणों को पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया था। हमले में और भी कई लोग घायल हुए। इस घटना के बाद पुलिस मानसिंह और परिवार वालों के पीछे पड़ गई। इसलिए मानसिंह अपने कुछ मिलने वालों के साथ बीहड़ के लिए निकल गए।
चंबल के बीहड़ में मानसिंह का मन नहीं लगा और वह गांव घूमने के लिए आ गए, तभी पुलिस ने मान सिंह को गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया। मानसिंह को उम्र कैद की सजा सुनाई गई। इसी बीच मानसिंह के दो फरार चल रहे बेटे धनवान सिंह और जसवंत सिंह को पुलिस ने मार गिराया। यह खबर जैसे ही मानसिंह को पता चली तो उसके दिल में आग लग गई। वह उस आग के साथ जेल में रहे और 10 साल के बाद जेल से मानसिंह को रिहा कर दिया गया।
बेटों की मौत का बदला लेने को पत्नी ने उकसाया
अब उम्र का भी पड़ाव था। बाल हल्के सफेद हो चले थे, घर पहुंचे पत्नी रुक्मणी मिली और दो अन्य बेटे मिले। उन्हीं के साथ उन्होंने संतोष के साथ जीवन काटना चाहा। लेकिन, अंदर जलती ज्वाला, पुलिस की नाइंसाफी, साहूकार और ब्राह्मणों के द्वारा किया गया अन्याय शायद मानसिंह को खाए जा रहा था। फिर भी मानसिंह विचार कर चुके थे कि अब वह संतोष के साथ जीवन जियेंगे। लेकिन प्रकृति को कुछ और ही मंजूर था।
अचानक मानसिंह की पत्नी रुक्मणी अपने पति से कहती है कि आप चूड़ी पहन लीजिए और घूंघट ओढ़ लीजिए घर में बैठ जाइए, क्योंकि आपके बस में बदला लेना नहीं है और मुझे तो अपने दो बेटों का बदला लेना है। जवाब में मानसिंह ने कहा कि आप ठाकुरों को नहीं जानती। उनकी कसमों को नहीं जानती, अगर बीहड़ चले गए तो वापस आना मुमकिन नहीं है। यह कहते हुए मानसिंह अपने जिंदा बचे दो बेटों और भाई तहसीलदार की तरफ देखा है और कहता है, चलो उठो अब होगा खून का इंसाफ।
पुलिस वालों सहित कई ब्राह्मणों को उतार दिया मौत के घाट
यहीं से शुरू होता है डाकू मानसिंह के आतंक का रास्ता। मानसिंह सबसे पहले तो उस पंडित को मारता है, जिसने मानसिंह के बेटों की जानकारी पुलिस को दी थी। फिर उन 32 पुलिस वालों को मारता है जो एनकाउंटर में शामिल थे। मानसिंह की बदले की भावना लगातार मान सिंह को क्रूर बनाती जा रही थी और वह लगातार हत्याएं कर रहे था। मानसिंह ने यह प्रण ले लिया था कि वह गरीब लोगों की सेवा करेंगा, गरीबों को न्याय दिलाएंगा और जो साहूकारों से धन लूटा जाएगा, उस पैसे को गरीबों में बांट दिया जाएगा।
इसी वजह से मानसिंह की छवि दिन ब दिन आम जनमानस के बीच गरीब लोगों के बीच बढ़ती जा रही थी। बताया जाता है कि मानसिंह महिलाओं की बहुत इज्जत किया करता था। एक बार मानसिंह के गैंग के ही डाकू सुल्तान सिंह ने किसी महिला पर हाथ डाल दिया था तो स्वयं मानसिंह ने अपने ही गैंग के सदस्य सुल्ताना को मौत के घाट उतार दिया था। अब चंबल की घाटी में मानसिंह का रोब चलने लगा था। चंबल की घाटी मानसिंह के नाम से कांपने लगी थी। लोकल पुलिस के लिए मानसिंह गांव सर दर्द बन चुका था। पुलिस से काफी बार आमना-सामना होता है मुठभेड़ होती है, लेकिन पुलिस की एक भी गोली मानसिंह को नहीं छु पाती।
पुलिस ने योजनाबद्ध तरीके से मानसिंह को मार गिराया
पुलिस के रिकॉर्ड में मानसिंह पर 112 मामले सिर्फ लूट के दर्ज हो चुके थे। हालांकि बताया जाता है मानसिंह कभी भी राह चलते लोगों को नहीं लूटता था। मान सिंह अमीरों से लाखों रुपए लूटता और सारा लूटा हुआ पैसा गरीबों में बांट देता था। उनकी बेटियों की शादी भी कराता था। अपने रहते हुए उसने एक भी गरीब पर जुल्म नहीं होने दिया। उसने हजारों लोगों की हर तरीके की मदद की। इसलिए लोग उसे सम्मान देने लगे। इन्हीं सब कामों के चलते लोग इज्जत से उसे चंबल का राजा कह कर बुलाने लगे थे।
अब पुलिस हर संभव डाकू मानसिंह का आतंक खत्म करना चाहती थी बताया जाता है कि पुलिस ने सेना का सहारा लिया और जहां मानसिंह को ठहरना था, वहां उनके दूध में कुछ मिलाकर पिलाया गया। जिससे मानसिंह व उनके साथियों की अवस्था बेहोशी की हो चली थी। उसी समय उनके साथियों पर गोली बरसा दी गई और मानसिंह गैंग पर तब धोखे से हमला किया गया। जिसमें मानसिंह व उनके साथियों को मारा गया। हालांकि, जिन लोगों ने दूध नहीं पिया था। वह लोग बचने में कामयाब रहे। आज भी डाकू मानसिंह और उनकी पत्नी का गांव में मंदिर बना हुआ है, लोग उनकी पूजा करते हैं। सन 1971 में मानसिंह पर पहली फिल्म बनी थी। 1984 में मानसिंह का मंदिर बना और 2019 में मानसिंह पर दूसरी फिल्म बनाई गई।