Agriculture News: जिला कृषि रक्षा अधिकारी डॉ राजेन्द्र पाल सिंह ने बताया कि गाजर घास जिसे आमतौर पर कांग्रेस घास, सफेद टोपी, असाडी, गाजरी चटक चांदनी गंधी बूटी आदि नामों से भी जाना जाता है। यह एक विदेशी आकामक खरपतवार है। भारत में पहली बार 1955 में अमेरिका से आयातित गेहूं के साथ इसका आगमन होने के बाद यह विदेशी खरपतवार रेलवे ट्रैक, सड़कों के किनारे, बंजर भूमि, उद्यान आदि सहित लगभग 35 मिलियन हैक्टेयर फसलीय और गैरफसलीय क्षेत्रों को प्रभावित कर रहा है।
गाजर घास से होते हैं यह नुकसान
गाजर घास को सबसे अधिक खतरनाक खरपतवारों में गिना जाता है, क्योंकि यह मनुष्यो और पशुओं में त्वचा रोग, एक्जिमा, एलर्जी, अस्थमा जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बनता है। इसके सेवन से पशुओं में अत्यधिक लार और दस्त के साथ मुंह में छाले हो जाते हैं, साथ ही घास के मैदानों, चारागाहों और वन क्षेत्रों में इसके फैलने से चारे की उपलब्धता धीरे-धीरे कम होती जा रही है। रसायनिक विश्लेषण से पता चला है कि इसमें मौजूद “सेस्क्यूटरपिन लैक्टोन” नामक विषाक्त पदार्थ से फसलों के अंकुरण एवं वृद्धि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। गाजर घास उन्मूलन हेतु दिनांक 16 से 22 अगस्त 2023 तक जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है।
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इसके नियंत्रण के ये हैं उपाय
- फूल आने से पहले इस खरपतवार को उखाड़कर कम्पोस्ट या वर्मी कम्पोस्ट बना लें।
- गाजर घास को विस्थापित करने के लिए चकोडा, गेंदा जैसे स्व-स्थायी प्रतिस्पर्धी पौधों की प्रजातियों के बीज का छिड़काव करें।
- अकृषित क्षेत्रों में सम्पूर्ण वनस्पति नियंत्रण के लिए ग्लाइफोसेट (1.0-1.5%) जैसे शाकनाशी का छिड़काव करें।
- मिश्रित वनस्पति में पार्थेनियम के नियंत्रण हेतु मैट्रिब्यूजिन (0.3 0.5% ) का छिड़काव उसमें फूल आने से पहले करें,
- ताकि घास फूल के पौधों को बचाया जा सकें।
फसलों में शाकनाशियों के प्रयोग से पहले ब्लॉक स्तरीय कृषि रक्षा ईकाई पर परामर्श अवश्य कर लेना चाहिए। जुलाई-अगस्त के दौरान गाजर घास संक्रमित क्षेत्रों में बायोएजेन्ट / मित्रकीट “जाइगोग्रामा बाइकोलोराटा” को छोड़े। जिला कृषि रक्षा अधिकारी कार्यालय से सम्पर्क कर संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
अधिक जानकारी के लिए
मो. नं.- 7983845127, 8650128597 पर सम्पर्क कर सकते हैं।