इस स्वदेशी खेती से किसान हो रहे मालामाल, बाजार में है भारी मांग

SMART KISAN: राष्ट्रहित में स्वदेशी कपड़े पहनने के पक्षधर उत्तर प्रदेश के जनपद अमरोहा की तहसील हसनपुर के एक गांव के किसान ने परंपरागत खेती छोड़ कर कपास की खेती शुरू की है। हालांकि, आजादी के बाद तहसील क्षेत्र में स्वदेशी कपड़े पहनने की होड़ लगी थी। यहां के किसान अपने खेतों में कपास का उत्पादन करते थे। कपास से उत्पादित रुई से कपड़े तैयार होते थे और उसमें निकलने वाले बिनोला की लोग खीर बनाकर सेवन करते थे। दुधारू पशुओं को बिनौला खिलाने से दूध बढ़ जाता है।

हसनपुर तहसील क्षेत्र के गांव ढवारसी निवासी किसान शैलेश शर्मा पहले परंपरागत खेती कर रहे थे। उन्होंने राष्ट्रहित में स्वदेशी कपड़े पहनने के प्रति जागरूक किसान होने का परिचय देते हुए नवंबर 2022 में कपास की खेती करने का मन बनाया। वह राजस्थान पहुंचे और वहां के किसानों से इसकी खेती करने का पूरा तरीका जाना। राजस्थान से ही वह बीज लेकर आए। अपने एक एकड़ खेत में कपास की बुवाई की, समय-समय पर खाद पानी देने के अलावा जरूरत पड़ने पर छिड़काव भी किया।

प्योर रुई बिक रही 200 रूपये प्रति किलोग्राम

  • अब उनकी कपास की फसल से रुई का उत्पादन शुरू हो गया है।
  • बिनौला सहित उनकी रूई 100 तथा बिनौला निकालने के बाद प्योर रुई 200 रूपये प्रति किलोग्राम बिक रही है।
  • किसान शैलेश शर्मा का कहना है कि पहले वर्ष जानकारी के अभाव में एक एकड़ में एक लाख से अधिक की रुई का उत्पादन होने का अनुमान है।
  • जैसे-जैसे जानकारी बढ़ेगी, उत्पादन और आमदनी बढ़ जाएगी।
  • हालांकि, कृषि विभाग से किसी तरह की मदद न मिलने पर नाराजगी भी जताई।
  • उन्होंने कहा कि यदि कृषि विभाग द्वारा किसानों को परंपरागत खेती के अलावा अन्य खेती करने का प्रशिक्षण दिया जाए
  • तो किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है।

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राजस्थान में सीखी खेती करने की तकनीक

  • गांव निवासी किसान शैलेश शर्मा ने राजस्थान के रेबाड़ी जिले में सप्ताह भर ठहरकर
  • वहां के स्थानीय किसानों से खेती करने की तकनीक को बारीकी से सीखा।
  • वहां कपास की फसल को जाकर देखा और उसके बारे में बुवाई से लेकर तुड़ाई तक के बारे में जानकारी की।
  • रेबाड़ी की अटेरी मंडी से वह अपनी एक एकड़ भूमि के लिए
  • एक हजार, आठ सौ रुपये प्रति किलो की दर से 900 ग्राम बीज खरीद कर लाए थे।

कपास ओटने को चरखी भी अपने घर लगाई

  • किसान शैलेश शर्मा ने कपास से उत्पादित रुई और बिनोला को अलग करने के लिए चरखी भी अपने घर लगा ली है।
  • उन्होने 2022 में गेहूं की फसल काटने के बाद कपास की खेती की शुरुआत की थी।
  • यह खेती उनके लिए फायदे का सौदा साबित हुई है।
  • इस खेती को करने से एक तो उन्हें अन्य फसलों की तुलना में इस फसल से अधिक लाभ प्राप्त हुआ हो रहा है।
  • इसके अलावा फसलों में बेसहारा पशुओं द्वारा होने वाले नुक़सान से भी निजात मिल गई है।
  • क्योंकि, इस फसल को बेसहारा पशु खाने के लिए खेत में नहीं आ रहे हैं।
  • इसके अलावा बंदर भी इस फसल को न खाते और न उजाड़ रहे हैं।