AGRICULTURE NEWS: किसान एक ऐसी फसल की तलाश में हैं जो फसल बिना रखवाली के पैदा की जा सके। क्योंकि परंपरागत खेती को सर्दी, गर्मी व बारिश के मौसम में रात दिन खेतों पर रहकर किसान अपनी फसल को आवारा पशुओं से बचाने की कोशिश में लगा हुआ है। इसी के चलते किसानों का रुझान अन्य खेती की तरफ होना शुरू हो गया है। जनपद अमरोहा की हसनपुर तहसील क्षेत्र के गांव ढवारसी निवासी किसान सत्येंद्र त्यागी जंगली गेंदा की खेती कर रहे हैं। किसान ने बताया कि एक दिन उन्होंने डॉक्टर यशपाल सिंह भारद्वाज हिमाचल प्रदेश की एक वीडियो देखी, जिसमें वह जंगली गेंदा की खेती के बारे में बता रहे थे। इसके बाद उन्होंने डॉक्टर यशपाल सिंह भारद्वाज से फोन पर बात कर सारी जानकारी प्राप्त की।
फसल से संबंधित सारी जानकारी
किसान सत्येंद्र त्यागी ने फसल से संबंधित सारी जानकारी प्राप्त करने के बाद डॉक्टर यशपाल सिंह के मार्गदर्शन में 3 किलो बीज 2200 रूपये प्रति किलो के हिसाब से मंगवाया। इसके बाद उन्होंने जंगली गेंदे का बीज जुलाई, अगस्त व सितंबर में नर्सरी के लिए डाला, लेकिन ज्यादा बरसात के कारण वह नहीं जम सका। इसके बाद उन्होंने चौथी बार फिर हिम्मत दिखाते हुए 4 नवंबर को बीज नर्सरी के लिए डाला जो बहुत अच्छा जमा। खेत की अच्छी तरीके से चार जुताई करने के बाद जब पौध 45 दिन की हुई और पौधे की लंबाई 9 इंच से लेकर 12 इंच तक हो गई। तब 20 दिसंबर को खेत में गूल पर रोपाई कराई गई।
6 माह की अवधि में तेल निकालने के लिए तैयार
पेड़ से पेड़ की दूरी 15 सेमी और गूल से गूल की दूरी 45 सेंटीमीटर रखी गई।
जंगली गेंदे की रोपाई के बाद पानी की आवश्यकता के अनुसार हल्की सिंचाई कराई गई।
जंगली गंदे को खरपतवार से बचाने के लिए एक बार निराई गुडाई कराई गई है।
रोपाई के 3 महीने बाद इस पर फूल आना शुरू हो गया है
और यह 20 अप्रैल तक तेल निकालने के लिए तैयार हो जाएगी।
यह फसल 6 माह की अवधि में तेल निकालने के लिए तैयार हो जाती है।
एक बीघा में जंगली गेंदे का तेल 3 से 5 किलो निकलता है
और इसका रेट 4 से 12 हजार रुपये तक होता है।
रेट की बात करें तो तेल की क्वालिटी के ऊपर होता है बताया जाता है कि
तेल के अंदर पाया जाने वाले ओसमी नामक तत्व के आधार पर रेट कम तथा ज्यादा होता है।
किसान का कहना है कि जब से मैंने जंगली गंदे की रोपाई खेत में कराई है
तब से मुझे आवारा पशुओं से फसल की रखवाली करने की जरूरत नहीं पड़ी है।
आवारा पशुओं और बंदरों के नुक़सान के कारण ही परंपरागत खेती छोड़ कर जंगली गेंदा की खेती शुरू की गई है।