असौडा रियासत: देश प्रेम की अनूठी मिसाल

HISTORY: असौडा हापुड़ जिले में मेरठ रोड पर स्थित एक कस्बा है, जो हापुड से 2 मील उत्तर दिशा में पड़ता है। मेरठ से इस स्थान की दूरी 17 मील है। यह स्थान त्यागी ब्राह्मणों से संबंधित है। चौधरी देवी सिंह ने असौडा रियासत की स्थापना की। इस रियासत में 27 गांव जुड़े थे। इस रियासत के चौधरी भूरी सिंह मराठों के अभियानों में उनके महत्वपूर्ण सहयोगी सेनापति रह चुके हैं। उन्होंने 18वीं शताब्दी में मराठों के साथ राजस्थान में अलवर तक अभियान किए। 1857 ईo की क्रांति के समय यहां के चौधरी हरदयाल सिंह त्यागी ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के सहयोग मांगने पर उन्हें विपुल धनराशि क्रांति के लिए सहयोग में प्रदान की थी।

मुगल बादशाह ने उनके सहयोग को देखते हुए उन्हें राजा की उपाधि प्रदान की। अंग्रेजों के दमन चक्र के दौरान चौधरी हरदयाल सिंह त्यागी को हापुड़ में बंदी बना लिया गया, किंतु विपुल धनराशि देकर वे अंग्रेजों के कोप से बच गए। उन्हें और उनके परिवार को कोई भी आर्थिक दंड अथवा फांसी की सजा नहीं सुनाई गई। जैसा कि अन्य क्रांतिकारियों के साथ हुआ।

29 अक्टूबर 1929 ईo को महात्मा गांधी आए थे असौड़ा

यह परिवार आरम्भ से ही राजनीतिक रूप से जागरूक था। इसी कारण अंग्रेज इस परिवार को कोई हानि नहीं पहुंचा सके और इनका परिवार सुरक्षित बच गया। 1901 ईo में इस स्थान की आबादी 3535 थी। जिनमें से 1125 मुस्लिम थे। चौधरी देवी सिंह के दो पुत्र हुए। जिनका नाम रघुवीर नारायण त्यागी और रघुवंश नारायण त्यागी था। चौधरी रघुवीर नारायण त्यागी जी की महात्मा गांधी से बहुत घनिष्ठता थी। 29 अक्टूबर 1929 ईo को महात्मा गांधी असौड़ा आए और उन्होंने महल में रात्रि विश्राम किया। वहाँ पर उन्होंने एक हरिजन को मंदिर में झाड़ू लगाते देखा और वे बहुत प्रसन्न हुए। इस घटना का उल्लेख उन्होंने अपने अखबार नवजीवन, यंग इंडिया और हरिजन में भी किया है। उन्होंने कहा कि यदि उनकी तरह और जमींदार भी अपने मंदिरों के द्वार हरिजनों के लिए खोल दें तो अस्पृश्यता मिट सकती है।

राष्ट्रपति के रूप में गांधीजी की पहली पसंद थे रघुवीर नारायण त्यागी

1932 ईo के लगभग उन्होंने कचहरी रोड स्थित बेगम समरू की संपत्ति अंग्रेज सरकार से खरीदी जो असौड़ा हाउस के नाम से जानी जाती है। महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन में उनसे काफी सहयोग लिया एवं 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में असौडा के रघुवीर नारायण त्यागी ने मेरठ से अगुवाई की। उन्होंने ही 1946 ईo में कांग्रेस का मेरठ अधिवेशन आयोजित कराया। मेरठ का त्यागी हॉस्टल और गांधी आश्रम उन्हीं की जमीन पर बना है जो उन्होंने दान में दी थी। महात्मा गांधी कहते थे कि यदि अंग्रेजों के पास अनेक राजा हैं तो हमारे पास भी एक राजा हैं ‘जितेंद्र नारायण सिंहʼ। आजादी के बाद भी वे राष्ट्रपति के रूप में गांधीजी की पहली पसंद थे, परंतु उन्होंने इंकार कर दिया। 9 जुलाई 1969 ईo को उनका निधन हो गया।

स्रोत:
1.स्टैटिकल डिस्क्रिप्टिव एंड हिस्टोरिकल अकाउंट ऑफ द नॉर्थ वेस्टर्न प्रोविंस ऑफ इंडिया, वॉल्यूम- 2 , ईटी एटकिंसन, मेरठ डिवीजन , पार्ट-1।
2. मेरठ के पाॅॅच हजार वर्ष, हस्तिनापुर रिसर्च इंस्टीट्यूट मेरठ।

विग्नेश कुमार।।

प्रस्तुति: अनंत कुमार त्यागी( इतिहासकार) नेट, पीoएचoडीo (pursuing)
कुमाऊं यूनिवर्सिटी नैनीताल उत्तराखंड।